मधुमेह के उपचार के लिए रामबाण आसन
अर्ध मत्स्येन्द्रासन:
गोरखनाथ के गुरू मत्स्येन्द्रासन के नाम पर इस आसन का नामकरण हुआ है, जो इस आसन में घंटों ध्यान किया करते थे-
विधि:
- सामने की ओर दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जायें।
- अब दाहिने पैर को मोड़ते हुये बायें घुटने के बगल में बाहर की ओर रखें।
- इसके बाद बायें को दाहिने ओर मोड़िये। एड़ी दाहिने नितम्ब के पास रहें।
- बायें हाथ को दाहिने पैर के बाहर की ओर रखते हुये दाहिने पैर के टखने या अंगूठे को पकड़ें।
- दाहिना हाथ पीछे की ओर कमर में लपेटते हुए शरीर को दाहिनी ओर मोड़ें।
- अन्तिम अवस्था में पीठ को अधिक से अधिक मोड़ने की कोशिश करें।
- एक मिनट इस अवस्था में रूकने के बाद धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आ जायें।
- अब इसी क्रिया को विपरीत दिशा में करें।
श्वांस:
- शरीर को मोड़ते समय रेचक। पूर्णावस्था में श्वांस सामान्य और सामने लौटते समय पूरक।
- एकाग्रता पेंक्रियाज (उदर) या श्वसन।
सावधानियां:
- महिलायें दो-तीन महीने के गर्भ के बाद इस आसन का अभ्यास न करें।
- पेप्टिक अल्सर, हार्निया या हाइपर, थायरायड से ग्रस्त व्यक्ति इसका अभ्यास योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें।
- जिन्हें हृदय रोग है उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे हृदय से निकलने वाली धमनियों और कशेरूकाओं पर अधिक जोर पड़ता है।
- साइटिका या स्लिप डिस्क से पीड़ित व्यक्तियों को इस आसन से बहुत लाभ हो सकता है परन्तु उन्हें एक माह तक पूर्वाभ्यास के साथ वक्रासन करना चाहिए।
लाभ:
- यह आसन यकृत और मूत्राशय को सक्रिय बनाता है। जिन लोगों के शरीर के भीतर इन्सुलिन का उत्पादन नहीं होता, जिन्हें मधुमेह की बीमारी होती है, यह अभ्यास उनके शरीर में अग्नाशय को सक्रिय बना कर इन्सुलिन के उत्पादन में सहयोग देता है, इसलिए यह मधुमेह के उपचार के लिए रामबाण दवा है।
- इस अभ्यास में शरीर को मोड़ते हैं, जिसके कारण आंतों, अमाशय एवं पाचन-संस्थान की मालिश होती है, जिससे पाचन-संस्थान सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है।
- यह आसन अधिवृक्क ग्रन्थि, उपवृक्क ग्रन्थि एवं पित्त के स्राव का नियमन करता है।
- यह मेरूदण्ड के स्नायुओं को स्वस्थ बनाता है, पीठ की मांसपेशियों को लचीला बनाता है।
योगीराज डाँ0 राज कुमार रॉय
संजीवनी योगाश्रम
38/सी, सरकुलर रोड, मैत्रीपुरम
रेलवे बिछिया कालोनी, गोरखपुर